Sunday, 13 May 2018

‘नक्काश’ मेरे लिए फिल्म नहीं इत्र की खुशबू है...

-इनामुल हक़...
बनारस में शूटिंग का पहला दिन था। छोटे शहरों की सिनेमाई जिज्ञासाभीड़ में बदलने लगी थी। उसी भीड़ में से कुछ नौजवान यह कहते हुए नज़दीक रहे थे कि चलो देखते हैं हीरोकौन है? जैसे ही उनकी यह बात मेरे कानों तक पड़ी, ‘-खुदामैं छुप गया था। वजह बहुत सीधी सी है। उनकी उत्सुकता को निराशामें नही बदलना चाहता था मुझे पता है हीरोक्या होता है। रोज़ आइना देखता हूं इसलिए किसी गलतफहमी में नहीं हूं। लेकिन सपनों की कोई बाउंडरी वॉलनहीं होती। इसलिए अपने आपको कभी भी यह सोचने से नहीं रोक पाया कि किसी फिल्म में लीड रोलहो। नियति पूर्वनिर्धारित है। हमें बस मदद करनी होती है। उसकी राहों की रुकावटें हटानी होती हैं। उसे घट जाने देनेके लिए... घट जानादरअसल बढ़ जानाही होता है पिछले छह महीने में बहुत कुछ घटा’, इसलिए कुछ बढ़ पारहा हूं। आप जो पोस्टरदेख रहे हैं वो महज एक पोस्टर नहीं है, बल्कि नियति की खींची हुई कुछ लकीरें हैं जिन के पीछे वो स्याही है जो इत्र की तरह कतरा-कतरा करके बहुत बड़े वक्फे में जमा हुई है। और खर्च होकर जो हासिल हुआ है उसका नाम है नक्काश आप सबके के लिए महज़ एक फिल्म, मेरे लिए इत्र की खुशबू। जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है बयान नही।

नक्काशआज के दौर के लिए एक ज़रूरी फिल्म है। जिसका बनना जितना ज़रूरी था, उससे भी ज़रूरी है उसका रिलीज़ होना। और उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है लोगों का सिनेमा हॉल तक आना। हम सिनेमा के उस दौर से गुज़र रहे हैं जहां एक तरफ, हर मुट्ठी में एक सिनेमा है...डिज़िटली यूअर्स तो दूसरी तरफ सिनेमा चंद मुट्ठियों में कैद है ‘100 करोड़ी क्लबऔर सितारागर्दीके मायाजाल में जकड़ा। बाकी बस एक छटपटाहट है सिनेमा के असली वजूद को बरकरार रखने की। गिरती हुई दीवारों के रेस्टोरेशनकी। नक्काशउसी छटपटाहट से बनी एक ईंटहै जिसमें डायरेक्टर जै़गम इमाम के जुनून का निचोड़ है। प्रोड्यूसर पवन तिवारी, पीयूष सिंह और गोविंद गोयल के भरोसे का इम्तेहान है। को-एक्टर शारिब हाशमी, कुमुद मिश्रा और राजेश शर्मा की दोस्ती का सरमाया है। इसके अलावा अनगिनत उम्मीदों की डोर है जो इस ईंट से बंधी हुई है। कोई लड़ाई नहीं है। हम सिर्फ कोशिश कर सकते हैं कि ईंट दीवार में सही जगह लगे। डोर टूटे नहीं। कोशिश जारी है।

सफर बनारस से शुरू हुआ था और कांसपर आकर रफ्तार पकड़ी है। मंज़िल इंतज़ार कर रही है कहीं। लेकिन सफर और मंज़िल के बीच जो सबसे ज़रूरी चीज़ है उसे दर्ज करना उससे भी ज़रूरी है। और वो चीज़ है आपका प्यार आप, जो मेरी हर खुशी को अपनी खुशी बना कर मेरी खुशी और बढ़ा देते हैं, वो बेशकीमती है। मेरे हर कदम पर आपकी हौसला-अफजाई मेरी रगों में दौड़ते लहू को जो ताज़गी देती है, उसके लिए सिर्फ शुक्रियाकह देना बेईमानी होगी। बस, इतना कह सकता हूं कि आपके लिए भी दुआएं बसी हैं इस दिल में। अलग-अलग इज़हार नही कर पाता, उसके पीछे बहुत सारी वजहें हो सकती हैं। लेकिन आप मायने रखते हैं मेरे वजूदके लिए। आप हैं तो मैं हूं।

बने रहिए...!
(‘फिल्मीस्तान’, ‘एयरलिफ्ट’, ‘जॉली एल.एल.बी. 2’ जैसी फिल्मों में अपनी उम्दा अदाकारी से पहचाने गए इनामुल हक़ कमाल के लेखक भी हैं। उनकी अगली फिल्म नक्काशका पोस्टर अभी कांस फिल्म फेस्टिवल में जारी हुआ जिसके बाद उन्होंने यह पोस्ट लिखी जिसे उनकी इजाज़त से सिनेयात्राके पाठकों के लिए लिया गया है।)

1 comment:

  1. बहुत बधाई। अभिनेता के साथ लेखक होना सोने पर सुहागा है। आपकी फ़िल्में खूब चलें, खूब दर्शक आपको मिलें यही दुआ है।

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