Thursday, 27 June 2019

रिव्यू-मुल्क का दलदल दिखाती ‘आर्टिकल 15’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
रंग दे बसंतीमें एयरफोर्स अफसर बने माधवन कहते हैं-तुम बदलो इस देश को। पॉलिटिक्स ज्वाइन करो, पुलिस या आई..एस. में भर्ती हो जाओ, बदलो चीज़ों को। लेकिन तुम नहीं करोगे। क्योंकि घर की सफाई में हाथ गंदे कौन करे...!

इस फिल्म को आए 13 बरस से ज़्यादा हो गए। इस दौरान कई बार मेरे ज़ेहन में यह ख्याल आया कि माधवन की इस सलाह को कितनों ने सुना होगा? सुना होगा तो क्या माना भी होगा? माना होता तो हर साल इस मुल्क की ऊंची और पॉवरफुल कुर्सियों पर बैठने वाले आई..एस., आई.पी.एस. अफसर हालात बदलने के लिए क्यों नहीं कुछ कर पा रहे? क्या ये भी ज़ंग लगे सिस्टम का हिस्सा होकर रह जाते हैं? और फिर मुझे आर्टिकल 15’ जैसी फिल्म दिखती है जो बताती है कि अभी इतना अंधेरा नहीं हुआ है कि कोई उम्मीद की किरण भी ढूंढ पाए। जो दिखाती है कि अयान रंजन नाम का एक आई.पी.एस. अफसर माधवन के कहे को मान कर इस गंदगी में उतरता है, अपने हाथ भी गंदे करता है और चीज़ों को बदलता भी है। उम्मीद की एक बड़ी चमक मुझे इस फिल्म का प्रैस शो देखने के अगले ही दिन अखबार में भी मिलती है कि कैसे विदिशा के कलेक्टर खुद नाले में सफाई करने उतर गए और बाकियों के लिए प्रेरणा बन गए। समाज और सिनेमा जब एकरूप होते हैं तभी तस्वीर मुकम्मल होती है।

Monday, 24 June 2019

ओल्ड रिव्यू-रमन राघव-न काला न सफेद

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
मुबारक हो, अनुराग कश्यप लौट आए हैं। वही अनुराग जो जिंदगी के, इंसानी मन के और समाज के अंधेरे कोनों को दिखाने में महारथ रखते हैं।
एक साइको किलर। किसी को भी किसी भी वजह से या बेवजह मारने वाला।
एक पुलिस अफसर। नशेड़ी। कभी भी किसी को भी मारने वाला।
क्या फर्क है दोनों में? एक अपराधी है और दूसरा मकसद से मार रहा है? नहीं। यहां अपराधी और पुलिस का फर्क नहीं है। पहला खुलेआम मार रहा है, दूसरा वर्दी की आड़ में। पहले को दूसरे की तलाश है और दूसरे को पहले की। पर क्यों?

Saturday, 22 June 2019

रिव्यू-‘कबीर सिंह’-थोथा चना बाजे घना

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
कहानी-एक ही कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के-लड़की में प्यार हो गया। लड़की के बाप को इनका रिश्ता पसंद नहीं। लड़की की शादी कहीं और करवा दी गई। लड़के ने खुद को शराब में डुबो लिया। फिर कुछ हुआ और लड़का सुधर गया।

देखा जाए तो कबीर सिंहकी कहानी बस इतनी ही है। लेकिन इस कहानी के चारों तरफ बहुत कुछ लपेटा गया है। इसके किरदारों के चारों तरफ भी कुछ आवरण हैं जो इसे बीते कुछ सालों में आई फिल्मों से हट करबनाते हैं। लेकिन यह हट करक्या सचमुच घिसी-पिटी लीक को तोड़ता है या फिर सिर्फ हटनेके लिए हटा गया है ताकि लोगों को इस झांसे में लेकर अपना माल बेचा जा सके कि देखिए, यह हट करवाला माल है?

Thursday, 13 June 2019

रिव्यू-रहस्य-रोमांच का खेल ‘गेम ओवर’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
शहर के बाहरी पॉश इलाके की एक बड़ी कोठी में अकेली रह रही एक युवती को आधी रात को बेदर्दी से कत्ल कर दिया जाता है। हत्यारा सनकी है। वह वीडियो बनाते हुए लड़की की गर्दन को तलवार से अलग कर देता है और धड़ को जला देता है। हम अखबारों की सुर्खियां देखते हैं कि शहर में लगातार इस किस्म की वारदातें हो रही हैं। हमें लगता है कि यह फिल्म सीरियल किलिंग दिखाने वाली एक मर्डर-मिस्ट्री होगी। क्या सचमुच...?

शहर के वैसे ही इलाके की एक बड़ी कोठी में एक गार्ड और अपनी केयरटेकर के साथ रह रही युवती सपना (तापसी पन्नू) को अंधेरे से डर लगता है। उसके अतीत का एक हादसा उसे कोंच रहा है। हमें लगता है कि यह एक साइक्लॉजिकल थ्रिलर होगी। क्या सचमुच...?
सपना ने साल भर पहले अपनी कलाई पर एक टैटू बनवाया था। अक्सर उसे इस जगह पर भयंकर दर्द होता है। इस टैटू से जुड़ा एक सच सामने आता है तो सपना के साथ हम भी चौंकते हैं। हमें लगता है कि यह एक हॉरर फिल्म होगी। क्या सचमुच...?