-दीपक दुआ...
1983 की बात है। कुछ भूवैज्ञानिकों की देखरेख में गुजरात के बालासिनोर में खनिजों की खोज के लिए खुदाई की जा रही थी। अचानक उन्हें वहां कुछ अजीब-सी चीजें मिलीं। सावधानी से खुदाई की गई तो पता चला कि वे अजीब-सी चीजें दुनिया के विशालतम जीवों डायनासोर के अवशेष थे। इतना ही नहीं यहां पर डायनासोर के करीब दस हजार अंडे भी मिले। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये अवशेष और अंडे करीब साढ़े छह करोड़ साल पुराने हैं और एक ही जगह पर इतने सारे जीवाश्म वाला यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्थान है। और अब अच्छी खबर यह कि यहां पर एक विशाल और भव्य म्यूजियम खोला गया है जिसका उद्घाटन हाल ही में गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने किया।
अहमदाबाद से करीब सौ किलोमीटर दूर बालासिनोर कभी एक रियासत हुआ करती थी जहां यूसुफजई वंश का शासन था। लेकिन यह बात महज तीन सौ साल पुरानी है जबकि करोड़ों साल पहले यहां दुनिया के विशालतम जीवों यानी डायनासोर का शासन हुआ करता था। 1983 से 2003 के दौरान यहां हुई खुदाई में बड़ी मात्रा में कई तरह के डायनासोर के अवशेष, उनके कंकाल,
हड्डियां, अंडे आदि मिले। ये अंडे बतख के अंडों से लेकर तोप के गोलों तक के साइज के हैं। यहां बालासिनोर डायनासोर फॉसिल पार्क है लेकिन दुनिया को इनके बारे में काफी कम जानकारी है। लोगों को भारत और गुजरात की इसी विशेषता के बारे में बताने के लिए ही बालासिनोर के रेयोली गांव में यह डायनासोर सूचना केंद्र और संग्रहालय खोला गया है।
करीब 25 हजार वर्ग फुट क्षेत्र में बने इस बेहद आधुनिक किस्म के म्यूजियम के बेसमेंट और भूमितल पर दस गैलरियों में डायनासोर की विभिन्न किस्मों के बारे में पोस्टर-प्रदर्शनियों और फिल्मों आदि से जानकारी दी जाती है। राजासोरस नर्मदेन्सिस नामक डायनासोर के बारे में जानकारी देने के लिए खासतौर पर एक 3-डी फिल्म का निर्माण भी किया गया है जो यहां दिखाई जाती है। इनके अलावा यहां एक 5-डी थिएटर भी है और टाइम मशीन आदि का प्रदर्शन भी किया गया है। यहां की गैलरियों में गुजरात और भारत के दूसरे हिस्सों में पाए गए डायनासोर के जीवाश्मों के बारे में बताया गया है। अलग-अलग किस्म के डायनासोरों के 40 हूबहू पुतले यहां प्रदर्शित किए गया हैं। इन पुतलों का निर्माण नामी पुरातत्वविज्ञानियों की देखरेख में उनकी बरसों की रिसर्च को आधार बना कर किया गया है। साथ ही डायनासोर किस माहौल में रहा करते थे, उसे भी यहां रचा गया है जहां पहुंच कर लगता है कि आप करोड़ों साल पीछे जुरासिक युग में आ पहुंचे हैं। इस म्यूजियम की देखरेख के लिए एक फॉसिल पार्क विकास सोसायटी बनाई गई है।
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं,
न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी.
से भी जुड़े हुए हैं।)
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