-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
यह अनुराग कश्यप का सिनेमा है बाबू। इसे आप यूं ही नहीं समझ सकते। सिर पर ठंडा-ठंडा, कूल-कूल तेल लगा कर फिल्म देखिए या देखने के बाद लगाइए, तभी कुछ पल्ले पडे़गा।
मुबारक हो, अनुराग कश्यप लौट आए हैं। वही अनुराग जो जिंदगी के, इंसानी मन के और समाज के अंधेरे कोनों को दिखाने में महारथ रखते हैं।
एक साइको किलर। किसी को भी किसी भी वजह से या बेवजह मारने वाला।
एक पुलिस अफसर। नशेड़ी। कभी भी किसी को भी मारने वाला।
क्या फर्क है दोनों में? एक अपराधी है और दूसरा मकसद से मार रहा है? नहीं। यहां अपराधी और पुलिस का फर्क नहीं है। पहला खुलेआम मार रहा है, दूसरा वर्दी की आड़ में। पहले को दूसरे की तलाश है और दूसरे को पहले की। पर क्यों?
एक डार्क कहानी को पूरे डार्कनैस के साथ दिखाते हैं अनुराग। लेकिन कहीं-कहीं अति हो जाती है तो कभी दोहराव। फिर भी फिल्म बांधती है तो अपने कथन और कलाकारों के अभिनय की वजह से।
प्रतीकों और बिंबों के इस्तेमाल से अनुराग अपनी कहानी को अलग ही मकाम दिलाते हैं। जितने जहाज उतने रावण, सिगरेट है पर माचिस नहीं, सड़क किनारे बिछे काले-सफेद चौखटे आदि का वर्णन समझने में दिमाग पर जोर लगाना पड़ता है। ये किरदार ऐसे क्यों हैं? और यह एपिसोड में कहानियां क्यों कही जा रही हैं? मुमकिन है इसे एक सहज फिल्मी थ्रिलर समझ कर देखने वालों को ये बातें निराश करें।
नवाजुद्दीन सिद्दिकी तो कमाल के हैं ही, विकी कौशल ने उनके सामने अपना पूरा कौशल दिखाया है। उनके किरदार को थोड़ा और विस्तार मिलता तो वह और निखर पाते। बैकग्राउंड म्यूजिक और अंधेरे का इस्तेमाल फिल्म का मिजाज बनाने में मददगार साबित हुए हैं।
यह एक नए किस्म का सिनेमा भले ही न हो मगर सिनेमा को एक नए चश्मे से देखने और दिखाने की सफल कोशिश जरूर है। अनुराग अपनी इन्हीं कोशिशों की वजह से भीड़ से अलग हैं। आप चाहें तो उनसे और उनके सिनेमा से प्रेम कर सकते हैं या फिर नफरत। बस, नकार नहीं सकते।
अपनी रेटिंग-तीन स्टार
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं,
न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी.
से भी जुड़े हुए हैं।)
No comments:
Post a Comment