कहानी-एक ही कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के-लड़की में प्यार हो गया। लड़की के बाप को इनका रिश्ता पसंद नहीं। लड़की की शादी कहीं और करवा दी गई। लड़के ने खुद को शराब में डुबो लिया। फिर कुछ हुआ और लड़का सुधर गया।
देखा जाए तो ‘कबीर सिंह’ की कहानी बस इतनी ही है। लेकिन इस कहानी के चारों तरफ बहुत कुछ लपेटा गया है। इसके किरदारों के चारों तरफ भी कुछ आवरण हैं जो इसे बीते कुछ सालों में आई फिल्मों से ‘हट कर’
बनाते हैं। लेकिन यह ‘हट कर’ क्या सचमुच घिसी-पिटी लीक को तोड़ता है या फिर सिर्फ ‘हटने’ के लिए हटा गया है ताकि लोगों को इस झांसे में लेकर अपना माल बेचा जा सके कि देखिए,
यह ‘हट कर’
वाला माल है?
दिल्ली में डॉक्टरी पढ़ रहे कॉलेज के सबसे होनहार छात्र कबीर सिंह के साथ ‘एंगर मैनेजमैंट’ की प्रॉब्लम है। गुस्सा उससे जज़्ब नहीं होता और गुस्से में वह सामने वाले का कचूमर निकाल देता है। फिल्म उसके इस गुस्से का कोई कारण नहीं बताती। चलिए, मान लिया कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो गुस्सा आने के बाद खुद पर काबू नहीं रख पाते लेकिन कबीर के भीतर गुस्से के अलावा अकड़ है, घमंड है, बदतमीज़ी है, अपने सामने किसी को कुछ भी न समझने का भाव है और फिल्म इसकी भी कोई वजह नहीं बताती। क्यों भई? ‘एंगर मैनेजमैंट’
एक समस्या हो सकती है,
मगर बाकी सब तो घर की परवरिश, बड़ों के संस्कारों और इंसान के परिवेश से उसे हासिल होता है। कबीर के घरवाले बड़े ही शांत,
संस्कारी, सिमटे हुए लोग हैं तो कबीर ऐसा क्यों है? फिल्म हमें नहीं बताती।
कॉलेज का हर बंदा-उसके साथी, दोस्त,
जूनियर, वार्डन और बाद में उसके साथ काम करने वाला अस्पताल का स्टाफ,
नर्सें वगैरह, हर कोई कबीर से दबता है, उसकी तरफदारी करता है, उसे पसंद करता है, उसकी गलतियों पर पर्दा डालता है। क्या सिर्फ इसलिए कि वह गुस्सैल है, या फिर वह होनहार है? फिल्म हमें नहीं बताती।
कबीर को दिल का नर्म, यारों का यार, सब का संकटमोचक ही बता दिया जाता तो भी चलता। खैर, कॉलेज में आई एक नई लड़की से उसे प्यार हो जाता है और वह बाकायदा उसे ‘मेरी बंदी’ डिक्लेयर कर देता है। चलो, मान लिया कि ऐसा भी होता है। लेकिन वह बंदी इस बंदे के इस ज़बर्दस्ती वाले प्यार को स्वीकार कर ही लेगी इसकी क्या गारंटी है? कोई गारंटी नहीं और इसीलिए लेखक इस गारंटी के चक्कर में पड़े ही नहीं और दिखा दिया कि पूरे कॉलेज के साथ-साथ इस लड़की ने भी यह मान लिया कि वह कबीर की ‘बंदी’ है। कबीर उसे जब चाहे क्लास से उठा लेता है, जब चाहे बाइक के पीछे बिठा कर घूमने निकल पड़ता है, जहां चाहे चूम लेता है, उसकी गोद में सिर रख कर लेट जाता है और वह बंदी सपाट चेहरा लिए उसकी किसी भी हरकत का विरोध किए बिना उसके सारे हुक्म मानती जाती है। क्यों?
फिल्म हमें नहीं बताती।
फिल्म यह भी नहीं दिखाती कि यह लड़की उसे चाहती भी है या नहीं। बस,
कुछ देर बाद यह दिखा दिया जाता है कि इन दोनों के बीच मोहब्बत हो चुकी है। लेकिन इस मोहब्बत की गर्माहट इधर सीट पर बैठे हुए इंसान के दिल को पूरी तरह से नहीं छू पाती। खैर, आगे चलते हैं। लड़का पहली बार लड़की के घर जाता है। लेकिन उसकी मां उसके साथ अक्खड़ बर्ताव करती है। छत पर उन्हें चिपके हुए देख कर लड़की का बाप इस कदर खफा हो जाता है कि कसम खा लेता है कि तेरे से बेटी नहीं ब्याहूंगा। क्यों भई? फिल्म हमें नहीं बताती।
अरे तेलुगू फिल्म की तरह जात-पात का चक्कर ही दिखा देते। लेकिन नहीं। चलो जी, हमें क्या, तेरी बेटी है, तू जान। इसके बाद खुद को बर्बाद करने की राह पर चल निकले लड़के की सोच तो समझ में आती है, मगर अंत में उसके अचानक-से सुधर जाने की नहीं। पर्दे पर आने वाली प्यार भरी कहानियां दिखाती आई हैं कि प्यार से सब कुछ जीता जा सकता है, यहां तो वो भी नहीं हुआ। फिल्म सचमुच ‘हट के’ है। छड्डो जी, सानूं की, मिट्टी पाओ।
जिस तेलुगू फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ का यह रीमेक है उसके लेखक-निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा ने ही इस फिल्म को बनाया है। और जब कोई निर्देशक अपनी ही किसी फिल्म को दूसरी भाषा में रीमेक करता है तो उसके पास नया करने को कुछ नहीं होता क्योंकि वह खुद को ही रिपीट कर रहा होता है। कहानी को आगे-पीछे करके कहने की संदीप की शैली प्रभावी है, हटके है। वह उन दृश्यों को भी रोचक बना देते हैं जो बड़े ही आम-से लग रहे थे। लेकिन इस फिल्म में बकबक बहुत है। किरदार बोलते हैं तो बोलते ही चले जाते हैं। करीब तीन घंटे लंबी इस फिल्म में बहुत सारे ऐसे सीन हैं जो खुद में भले ही रोचक हों, कहानी के साथ तारतम्य नहीं बिठा पाते। यहां तक कि यह फिल्म, नायक के दोस्त शिवा (सोहम मजूमदार) को छोड़ कर किसी अन्य किरदार को उभरने तक का मौका नहीं देती। सोहम का किरदार ही इस फिल्म में सबसे ज्यादा रौनक बिखेरता है और उन्होंने उसे जम कर निभाया भी है। सुरेश ओबरॉय, कामिनी कौशल,
अर्जन बाजवा, आदिल हुसैन, निकिता दत्ता जैसे कलाकार भी अपनी तरफ से खूब जंचते हैं। नायिका कियारा आडवाणी बहुत खूबसूरत तो लगी हैं लेकिन उनका बेवजह सपाट रहना अखरता है। दर्शक कन्फ्यूज़ रहता है कि वह नायक के जबरन थोपे जा रहे प्यार का शिकार हो रही इस लड़की के साथ हमदर्दी करे या इनके बीच के प्यार को महसूस करने पर ज़ोर लगाए। प्यार की गर्माहट छुए न, कचोटे न, आंखें नम न करे, तो भला कैसा प्यार!
फिल्म बुरी नहीं है। इसमें फौरी तौर पर पसंद किए जाने वाले मनोरंजन के तत्व हैं, स्टाइल है, गीत-संगीत है, जिनके दम पर यह चल सकती है, चल जाएगी। जो लोग गुस्सैल, अकड़ू, बदतमीज,
नशाखोर, औरतखोर नायक को पसंद करते हैं (ऐसे लोग भी बहुत हैं), उन्हें यह फिल्म जमेगी। लेकिन इस नायक का गुस्सा समाज, सिस्टम, बुराइयों,
कुरीतियों पर नहीं है, बेवजह है। इसीलिए यह नायक आपको कन्फ्यूज़ करता है कि इसके साथ आपको नफरत करनी है या प्यार। जिन लोगों को लड़कियों को अपनी प्रॉपर्टी समझना, उन्हें दुत्कारना पसंद है (और ऐसे लोग भी कम नहीं हैं), उन्हें भी यह फिल्म अच्छी लगेगी। इनके अलावा यह फिल्म अच्छी लगेगी उन लोगों को जो शाहिद कपूर की इस किस्म की एक्टिंग के फैन हैं जो वह ‘कमीने’, ‘हैदर’,
‘उड़ता पंजाब’ में भी दिखा चुके हैं और इसमें भी भरपूर शिद्दत से दिखाते हैं। यह फिल्म अच्छी लगेगी उन लोगों को जो बस टाइमपास मनोरंजन के लिए ऐसी फिल्में देखते हैं जिनमें सारे मसाले हों, भले ही वह फिल्म उन्हें कुछ देती न हो। सच यही है कि यह फिल्म कुछ देती नहीं है। इसे देखने के बाद आप यह नहीं बता सकते कि इससे आपने क्या हासिल किया या आपको क्या सीख मिली। हर फिल्म सिखाने के लिए बनाई भी नहीं जाती,
हर फिल्म कुछ दे ही,
यह भी ज़रूरी नहीं। तो बस, सिर्फ थोथा मनोरंजन ही चाहिए तो देखिए इसे।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं,
न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी.
से भी जुड़े हुए हैं।)
सटिक
ReplyDeleteI will go for and watch this movie for Shahid kapoor a
ReplyDeleteExactly sir.... Hawa hawa m film bnana without any logics y toh B's pariyo ki kahaniyo k trh hua fr😂
ReplyDeleteकल देखते हैं पा जी।
ReplyDeletesahi review kiya he..
ReplyDeleteबिल्कुल सही रिव्यू दिया आपने सर!
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