-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
किसी संवेदनशील विषय को कैसे उठाया जाता है इसे निर्देशक शुजित सरकार करीब सात साल पहले आई अपनी पिछली और पहली फिल्म ‘यहां’
में दिखा चुके हैं। कश्मीर के हालात की पृष्ठभूमि में एक आतंकवादी की बहन और एक फौजी अफसर की प्रेम कहानी दिखाने के बाद अपनी इस फिल्म में शुजित स्पर्म डोनेशन जैसे अनछुए विषय की पृष्ठभूमि में एक पंजाबी लड़के और एक बंगाली लड़की की लव स्टोरी लेकर आए हैं।
फिल्म की खासियतों में इसकी कहानी तो है ही, जूही चतुर्वेदी की वह पटकथा भी है जो एक ऐसे विषय को बड़े ही नाजुक हाथों से संभालती है जो जरा-सी चूक होने पर फूहड़ता और अश्लीलता की पटरी पर जा सकता था। एक ऐसा विषय जिस पर हमारे सिनेमा में तो क्या,
हमारे समाज में भी बात करना अभी तक वर्जित समझा जाता है। ऐसे में शुजित भी सराहना के पात्र हो जाते हैं जिन्होंने इस कहानी के इर्द-गिर्द जो फिल्म बुनी वह पूरी तरह से हिन्दी सिनेमा के उस कमर्शियल ढांचे में फिट बैठती है जो मनोरंजन परोसता है, लोगों को भाता है,
टिकट-खिड़की पर भीड़ भी जमा कर लेता है और अंत में दिलों को भावुक करता एक संदेश भी दे जाता है।
पात्रों का चरित्र-चित्रण अगर इस फिल्म की ताकत है तो उसी के मुताबिक कलाकारों का चयन करने की समझदारी ने इसे और दमदार ही बनाया है। एक मस्तमौला, बेपरवाह पंजाबी लड़के की भूमिका में पहली बार बड़े पर्दे पर आए आयुष्मान खुराना खूब जंचे हैं तो वहीं अपनी इस पहली हिन्दी
फिल्म में यामी गौतम न सिर्फ अपनी खूबसूरती बल्कि अपनी प्रभावी अदाकारी से भी दिलों को छूती हैं। मगर सबसे ज्यादा असर तो छोड़ा है डॉक्टर चड्ढा बने अन्नू कपूर ने। लंबे अर्से के बाद उन्हें इतना बड़ा रोल मिला है और बस,
वह छाए रहे हैं इस फिल्म में। बाकी तमाम किरदारों की बुनावट और उन्हें निभाने वालों की अदाकारी भी उम्दा है। फिल्म में रोमांस है, कॉमेडी है और चुटीले संवाद भी। दो-एक अच्छे गीत और अंत में जॉन अब्राहम वाला एक बढ़िया आईटम नंबर फिल्म का वजन और बढ़ाते हैं। इस विषय पर अपनी पहली फिल्म बनाने के लिए बतौर निर्माता जॉन अब्राहम भी शाबाशी के हकदार हो जाते हैं।
(नोट-यह रिव्यू 21 अप्रैल,
2012 के ‘नेशनल दुनिया’ अखबार में छपा था)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं,
न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी.
से भी जुड़े हुए हैं।)
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