-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
पिछले दिनों वेब-सीरिज़ ‘असुर’ के रिव्यू में मैंने लिखा था कि भारतीय वेब-सीरिज़ कंटेंट के मामले में लगातार कुछ अलग और उम्दा कर रही हैं। खासतौर से थ्रिलर के मामले में। फिर जब नेटफ्लिक्स जैसा प्लेटफॉर्म हो, निर्माता और लेखक के तौर पर इम्तियाज़ अली का नाम जुड़ा हो तो ‘शी’ से उम्मीदें भी बड़ी हो जाती हैं। लेकिन अफसोस, यह सीरिज़ बुरी तरह से निराश करती है। खासतौर से अपने कंटेंट के स्तर पर। यह सही है कि ‘रॉकस्टार’ के बाद से इम्तियाज़ के औज़ारों का पैनापन लगातार कम हुआ है लेकिन बतौर लेखक वह इतनी लचर कहानी लेकर आएंगे, यह उम्मीद भी उनसे नहीं थी।
पहले थ्रिलर पक्ष-इस किस्म की कहानियों में आप लॉजिक से खिलवाड़ नहीं कर सकते। लेकिन इसे देखते हुए एकदम शुरू में ही यह साफ हो जाता है कि कहानी अपने खुद के फ्लो में नहीं चल रही बल्कि इसे जबरन उस तरफ धकेला जा रहा है जहां इसके लेखक इसे ले जाना चाहते हैं। ए.सी.पी. लगातार कहता रहता है कि इस लड़की में कुछ बात है जो उसने इसे अंडरकवर ऑपरेशन के लिए चुना। क्या बात है, यह न तो वो हमें बताता है और न ही पूरी सीरिज़ खत्म होने तक सामने आती है। खुद उस लड़की को भी नहीं पता कि उसके अंदर ऐसी क्या बात है। सिर्फ दो दिन की बंद कमरे की ट्रेनिंग और लेडी कांस्टेबल सीधे कोठे पर...! ऊपर से ए.सी.पी. को अपने पर पूरा भरोसा है कि इस लड़की के साथ कोई ‘कुछ’ करे, उस से पहले हम उसे बचा लेंगे। कैसे...? अरे भई, स्क्रिप्ट में ऐसा ही लिखा है न। जालिमों,
पुलिस अगर ऐसा करती भी है तो वह किसी रियल कॉलगर्ल को अपने साथ शामिल करती है। अपनी ही कांस्टेबल को किसी के बिस्तर पर नहीं भेजती। खैर, स्क्रिप्ट में इस तरह के छेद तलाशेंगे तो स्क्रिप्ट नहीं, मच्छरदानी दिखेगी।
कोई वेब-सीरिज़ क्यों देखेंगे आप? कॉमेडी हो, थ्रिल हो, मैसेज हो, एक्शन हो, डर हो, कहानी दमदार हो, कुछ ‘हॉट’ बात हो...। इस वाली में इनमें से कुछ भी नहीं है। फिर भी देखना चाहें तो आपकी मर्ज़ी। हां, बच्चों को बचाएं इससे। खुद भी देखें तो बच्चों से बच कर।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि सिरीज़ कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
मुंबई पुलिस की एंटी नारकोटिक्स सेल किसी पुलिस स्टेशन से एक आम कांस्टेबल को अपने साथ जोड़ कर उसे कॉल गर्ल बना कर नशे के सौदागरों के पास भेजती है। टार्गेट है इनके सरगना नायक को पकड़ना। पहले पकड़ में आता है नायक का खास आदमी सस्या। उसकी दी हुई खबरों से पुलिस आगे बढ़ती है और नायक तक पहुंचना चाहती है। क्या वह सफल होती है?
क्या वह लड़की इन लोगों को रिझा पाने में कामयाब हो पाती है जो शक्ल-सूरत से इतनी आम है कि खुद उसका पति तक उसे छोड़ देता है?
पिछले दिनों वेब-सीरिज़ ‘असुर’ के रिव्यू में मैंने लिखा था कि भारतीय वेब-सीरिज़ कंटेंट के मामले में लगातार कुछ अलग और उम्दा कर रही हैं। खासतौर से थ्रिलर के मामले में। फिर जब नेटफ्लिक्स जैसा प्लेटफॉर्म हो, निर्माता और लेखक के तौर पर इम्तियाज़ अली का नाम जुड़ा हो तो ‘शी’ से उम्मीदें भी बड़ी हो जाती हैं। लेकिन अफसोस, यह सीरिज़ बुरी तरह से निराश करती है। खासतौर से अपने कंटेंट के स्तर पर। यह सही है कि ‘रॉकस्टार’ के बाद से इम्तियाज़ के औज़ारों का पैनापन लगातार कम हुआ है लेकिन बतौर लेखक वह इतनी लचर कहानी लेकर आएंगे, यह उम्मीद भी उनसे नहीं थी।
अब ‘शी’ वाली बात-नायिका एक आम लड़की है, चेहरे-मोहरे से, चाल-ढाल से, पैसे से, हर तरह से। तो उसे आम से खास बनाना मांगता। अब इसके लिए उसकी यौनिकता को सामने लाना मांगता। उसे बोल्ड दिखाना मांगता। जिसे उसका पति तक ‘ठंडी’ कह के छोड़ देता, उसे दुनिया के सामने गर्म दिखाना मांगता। बस यही तुम्हारे लिए नारी का मतलब होना मांगता...?
हद है।
निर्देशन साधारण है। साफ है कि कमज़ोर पटकथा इसका कारण है। दृश्यों में कसावट की कमी है। कई सीक्वेंस बोर करते हैं। बेमतलब की बातें ज़्यादा हैं। अंत जबरन बनाया गया लगता है ताकि दूसरे सीज़न में राज़ खोले जा सकें। पहले सीज़न में रोमांचित कर पाते तभी तो दूसरे सीज़न का बेसब्री से इंतज़ार होता। कैमरावर्क अच्छा है। सबसे अच्छा है भूमि के किरदार में अदिति पोहानकर और सस्या के रोल में विजय वर्मा को देखना। बाकी सबने टाइम पास किया है।
कोई वेब-सीरिज़ क्यों देखेंगे आप? कॉमेडी हो, थ्रिल हो, मैसेज हो, एक्शन हो, डर हो, कहानी दमदार हो, कुछ ‘हॉट’ बात हो...। इस वाली में इनमें से कुछ भी नहीं है। फिर भी देखना चाहें तो आपकी मर्ज़ी। हां, बच्चों को बचाएं इससे। खुद भी देखें तो बच्चों से बच कर।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि सिरीज़ कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
अदिति पोहानकर और विजय वर्मा के अभिनय के कारण ये वेब सीरीज देखी जा सकती है...कमाल की रेंज है इनके अभिनय की.वेब सीरीज के माध्यम से ऐसे बेजोड़ कलाकार नज़र आ जाते हैं जो सिनेमा के सुपर स्टार वाले युग में दिखने संभव नहीं.
ReplyDeleteसर बिल्कुल सही कहा आपने किसी भी प्रोफैशन में कैसा भी कार्य करने के लिए जबरजस्ती नही होती है, उसकी मर्जी हो तो बह करेगी पर इसमे तो भूमि कॉस्टेबल पर कॉल गर्ल बनने के लिए जबरजस्ती की गई और अगर नही बनेगी तो नौकरी से निकाल दिया जाएगा ऐसा कही होता है क्या और अगर ऐसा रियलिटी में होता है तो बहुत गलत होता है।
ReplyDeleteकहानी में ज्यादा दम नही है बही घिसी पीटी स्टोरी है, पर अब मुझे लगता है भूमि नायक को नायक मानकर पुलिस से गेम खेलेगी अब बह नायक के लिए काम करेगी।