Thursday, 27 May 2021

रिव्यू-निःशब्द करती ‘हैंडओवर’

किसी अखबार में छपा कि बिहार के एक गांव में एक मां ने गरीबी से तंग आकर अपनी बच्ची बेच दी। मीडिया में खबर उछली तो बवाल हो गया। सरकार हिलने लगी। तुरंत एक अफसर को भेजा गया कि बच्ची को तलाशो और जाकर उसकी मां को हैंडओवर कर दो। अफसर ने हुक्म बजाया। पर क्या इससे समस्या सुलझ गई? क्या बच्ची सचमुच बेची गई थी? क्या मां वाकई दोषी थी? क्या बच्ची वापस लाने का सरकार का कदम सही था? यह फिल्म इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करती है, एक सार्थक कोशिश।
 
एक सच्ची घटना पर आधारित यह फिल्म 2011 में बनी, कुछ एक जगह देखी-दिखाई गई और फिर दब गई। लेकिन इधर ऐसी फिल्मों के लिए संजीवनी बन कर उभरे .टी.टी. ने इसे प्राणवायु दी और अब यह एम.एक्स. प्लेयर पर उपलब्ध है, मुफ्त में।
 
फिल्म कायदे से लिखी गई है और सलीके से फिल्माई भी गई है। एक कड़वे यथार्थ को यथार्थवादी आइने से देखने और दिखाने की सौरभ कुमार की यह कोशिश प्रभावी है। फिल्म का अंत इसे एक ऐसे भावनात्मक मोड़ पर ले जाता है जहां दर्शक निःशब्द रह जाता है और तुरंत कोई प्रतिक्रिया देते नहीं बनती।
 
कहानी, संवाद, लोकेशन, कैमरा, किरदार, अभिनय और अंत में आने वाला एक गीत मिल कर इस फिल्म को गहरा और गाढ़ा बनाने में मदद करते हैं। अफसर रतन दास और उसकी पत्नी के बीच के कई दृश्य बेवजह लगते हैं और सुस्त भी। काफी सारे संवाद स्थानीय मगही में होने के कारण भी अड़चन आती है।
 
विकास कुमार, नूतन सिन्हा, प्रभात रघुनंदन, ओरुषिका डे, विजय कुमार आदि के अभिनय में रिएलिटी दिखती है। फिल्म में कोई मसाले नहीं हैं सोहटकेवाला सिनेमा देखने के शौकीन ही इसे देखें तो बेहतर होगा।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
(
दीपक दुआ फिल्म समीक्षक पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक फिल्म क्रिटिक्स गिल्डके सदस्य हैं और रेडियो टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

4 comments:

  1. आपका रिव्यू पढ़कर फिल्म देखने की जिज्ञासा बढ़ गई है, सर

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  2. धन्यवाद,फ़िल्म जरूर देखूंगा ,

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  3. दीपक जी, आपको नहीं लगता कि फिल्‍म का शीर्षक, कहानी से मेल नहीं खाता है? फिल्‍म बिहार के एक गांव की है और नाम है Handover. ये तो किसी अंग्रेजी एक्‍शन मूवी का शीर्षक लग रहा है। कोई देसी नाम रखते तो बेहतर होता।

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