-विष्णु शर्मा...
10 मई, 1857 को भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी मेरठ में भड़की थी। विद्रोही सैनिकों ने दिल्ली कूच किया और दिल्ली पर कब्जा कर के मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को देश का शहंशाह घोषित कर दिया था। उन दिनों अंग्रेज़ों ने दिल्ली में जिस प्रमुख जगह पर मोर्चा लगाया, वो जगह थी सिंधिया परिवार से जुड़े राजा हिंदू राव की विशाल हवेली। इस जगह पर अंग्रेज़ों और विद्रोही सैनिकों के बीच भीषण लड़ाई हुई और पूरी इमारत क्षत-विक्षत कर दी गई। बाद में जब अंग्रेज़ों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया तो इस जगह पर एक मिलिट्री हॉस्पिटल बनाया गया। फिर 1911 में यहां 16 बैड का एक सिविल हॉस्पिटल बना दिया गया। आज वही हॉस्पिटल दिल्ली के जाने-माने हॉस्पिटल्स में गिना जाता है। कभी बाड़ा हिंदू राव के नाम से जानी जाने वाली यह इमारत अब हिंदू राव हॉस्पिटल कहलाती है।
कौन थे हिंदू राव? बाजीराव के बाद मराठा ताकत को किसी ने फिर से संजो कर महाशक्ति और मुगलों को कठपुतली शासक बनाया तो वो थे ग्वालियर के शासक महादजी सिंधिया। उन्हीं महादजी सिंधिया के गोद लिए हुए बेटे दौलतराव सिंधिया से शादी हुई थी राजा हिंदू राव की बहन बैजा बाई की। वो कोल्हापुर में शिवाजी के दरबारी देशमुख सरदार के परिवार से थे। 1827 में दौलत राव की मृत्यु के बाद जानकोजी राव को गोद लेकर राजा बनाया गया। लेकिन बाद में जानकोजी से बैजा बाई की बनी नहीं और उन्हें ग्वालियर छोड़ना पड़ा था। बैजा बाई को शुरू से ही अपने पिता की तरह अंग्रेज़ों से नफरत थी। दरअसल हिंदू राव सिंधिया परिवार की राजनीति से परेशान होकर दिल्ली आकर बस गए थे। उस वक्त के गर्वनर जनरल लॉर्ड ऑकलैंड की बहन एमिली ईडन ने हिंदू राव के बारे में लिखा था,
‘’यूरोपियन सोसायटी में उन्हें काफी जाना पहचाना जाता है,
वो उनसे काफी मेलजोल भी पसंद करते हैं।’’ इधर बैजा बाई अलग-अलग शहरों में भटकते हुए दौलतराव की मौत के कई साल बाद ग्वालियर वापस पहुंचीं और तात्या टोपे के संपर्क में भी रहीं लेकिन अंग्रेज़ों से बगावत की हिम्मत नहीं जुटा पाईं।
किसने बनवाई यह इमारत? इस हॉस्पिटल की इमारत को हवेली के तौर पर सबसे पहले बनवाया था ब्रिटिश रेजीडेंट एडवर्ड कोलीब्रुक ने, लेकिन उनको करप्शन के आरोप में हटा दिया गया। 1831 में इसे नए रेजीडेंट विलियम फ्रेजर ने खरीद लिया, तो कॉम्प्लेस का बाकी का काम फ्रेजर ने पूरा करवाया। लेकिन चार साल बाद जब उसकी भी गोली मारकर हत्या कर दी गई तो इसे राजा हिंदू राव ने खरीद लिया। यहां से उसका नाम पड़ा बाड़ा हिंदू राव यानी हिंदू राव का घर। उनकी मौत के बाद 1855 में इसे अंग्रेजों ने खरीद तो लिया लेकिन उसका नाम नहीं बदला।
1857 की क्रांति में इसे अंग्रेजों ने विद्रोहियों से निपटने के लिए अपना प्रमुख ठिकाना बनाया क्योंकि यह जंगल में ऊंचाई पर बना था,
शहर से दूर। इसके ठीक सामने अशोक का वो स्तंभ लगा है, जो कभी फीरोज शाह तुगलक दिल्ली लेकर आया था. यह हॉस्पिटल जिस जगह बना है,
कभी इसी जगह पर ही तैमूर लंग ने भी दिल्ली पर हमले के वक्त अपना डेरा डाला था। आज़ादी के बाद इस हॉस्पिटल को सरकार ने बड़ा कर दिया और आजकल नॉर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (एनडीएमसी) के तहत यह हॉस्पिटल आता है।
यानी इस हॉस्पिटल का सीधे ग्वालियर के राज परिवार से कोई लेना देना नहीं था,
लेकिन ये उनके एक रिश्तेदार की हवेली की जगह बना था,
सो उन्हीं के नाम पर रख दिया गया। लेकिन ग्वालियर के राज परिवार से एक ऐसे हॉस्पिटल का नाम भी जुड़ा है जो पानी पर तैरता था। यह एक शिप हॉस्पिटल था, जो प्रथम विश्व युद्ध में घायल हुए सैनिकों के लिए था। इसका नाम था ‘आरएमएस इम्प्रैस ऑफ इंडिया’, जिसको ग्वालियर के राजा माधवराव सिंधिया ने खरीदकर प्रथम विश्व युद्ध में घायल सैनिकों के इलाज के लिए एक हॉस्पिटल शिप में तब्दील कर दिया था और नया नाम दिया था ‘एसएस लॉयलिटी’।
इस शिप के बारे में यह भी तथ्य रोचक है कि आज के कोरोना की तरह जब स्मॉल पॉक्स की महामारी फैली थी और हांगकांग से चढ़े एक यात्री को इससे संक्रमित पाया गया तो महीनों के लिए इस शिप को याकोहामा पोर्ट पर क्वारंटाइन कर दिया गया था। बाद में इसी शिप के जरिए 5 अप्रैल, 1919 को बॉम्बे से लंदन की यात्रा को पहली स्वदेसी शिप की लंदन यात्रा के तौर पर इतिहास में दर्ज किया गया और उस तारीख को आज हम नेशनल मैरीटाइम डे के तौर पर मनाते हैं। गांधीजी और जम्मू कश्मीर के राजा हरिसिंह भी उस यात्रा में शिप पर सवार थे.
(नोट-विष्णु शर्मा के इस विस्तृत आलेख का संपादित संस्करण 8 मई,
2021 के ‘दैनिक जागरण’ समाचार-पत्र में प्रकाशित हुआ है। इस लेख को लेखक की सहमति से व ‘दैनिक जागरण’ का आभार प्रकट करते हुए यहां दिया जा रहा है।)
(विष्णु शर्मा करीब 20 साल से मीडिया में हैं और कई प्रतिष्ठित अखबारों, चैनलों व पोर्टल के लिए काम कर चुके हैं। फिल्मों पर जम कर लिखते हैं लेकिन इतिहास के खोजी हैं। इनकी दो किताबें ‘इतिहास के 50 वायरल सच’ व ‘गुमनाम नायकों की गौरवशाली गाथाएं’ भी प्रकाशित हो चुकी हैं। ये गूगल से सर्टिफाइड फैक्ट चैकर भी हैं।)
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