-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
बाप-बेटे में बनती नहीं। बेटा शहर में जानवरों का डॉक्टर है। बाप को जंगल और हाथियों
से प्यार है। मां की बरसी पर बेटा आता है। उसी दौरान शिकारी हाथी-दांत के लिए हाथियों
को और उन्हें बचाने आए बाप को भी मार डालते हैं। अब बेटे का फर्ज़ बनता है कि वह एक-एक
को चुन-चुन कर मारे।
तो यह थी कहानी। आप कहेंगे कि इसमें कहानी जैसा क्या है? तो जनाब, अब जो है, यही है। अब आप इसे चूं-चूं
का मुरब्बा कह लीजिए,
खोदा पहाड़-निकला चूहा या फिर और कोई मुहावरा, जो आप पढ़ना-गढ़ना चाहें। अब बात
करते हैं स्क्रिप्ट की। तो,
स्क्रिप्ट का तो ऐसा है जी, अब से तीन-चार दशक पहले बॉलीवुड की बी-ग्रेड फिल्मों में जिस
तरह से सैट पर बैठ कर चलताऊ किस्म की पटकथा लिखी जाती थी न, ठीक वही हुनर, वही प्रतिभा इस फिल्म के
लेखकों ने इस फिल्म को लिखने में दिखाई है। किसी भी बंदे का किरदार कायदे से खड़ा ही
नहीं हो पाया।
और रही बात निर्देशन की तो, यह जान कर आप उछल सकते हैं कि इस फिल्म के डायरेक्टर हॉलीवुड
के नामी निर्देशक चार्ल्स ‘चक’ रशेल हैं जो ‘द मास्क’ और ‘द स्कॉर्पियन किंग’ जैसी फिल्में दे चुके हैं। अलबत्ता
इस फिल्म को देख कर शक होता है कि क्या सचमुच उन्होंने इसे डायरेक्ट किया या अमेरिका
से फोन पर बताते रहे कि बेटे ऐसे कर लो, वैसे कर लो।
एक्टिंग वगैरह के बारे में कुछ कहना बेकार है। जिस फिल्म में विद्युत जामवाल होते
हैं उसमें उम्दा एक्शन होता है, यह सब को पता है। एक्शन अक्षय ओबराॅय ने भी शानदार किया है। मकरंद देशपांडे, अतुल कुलकर्णी जैसे सधे
हुए कलाकारों को ज़ाया करती है यह। और हां, फिल्म के नाम का इसकी कहानी (अब जो भी, जैसी भी है) से कोई वास्ता
नहीं है। अलबत्ता इस फिल्म को बनाने वाली कंपनी का नाम ‘जंगली पिक्चर्स’ ज़रूर है।
यह फिल्म एकदम खराब भी नहीं है। जानवरों को बचाने की बातें हैं इसमें-भले ही बहुत
गहराई से न हों। बहुत उम्दा एक्शन है, शानदार फोटोग्राफी है, कहीं-कहीं चुटीलापन है, निकर वाली हीरोइन भी है।
कुल मिला कर यह एक बचकानी-सी फिल्म है जो बच्चों को और बच्चा बन कर फिल्में देखने वालों
को बुरी नहीं लगेगी।
अपनी रेटिंग-दो स्टार
बहुत बढ़िया रिव्यू भईया...👌
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