वरुण बत्रा-दीप्ति बत्रा। पति-पत्नी। बरसों की कोशिश के बाद
भी ये दोनों मां-बाप नहीं बन पा रहे थे तो ये लोग पहुंचे डॉ. जोशी के आई.वी.एफ. क्लिनिक
में ताकि कृत्रिम गर्भाधान करवा सकें। लेकिन एक गड़बड़ हो गई। वहां चंडीगढ़ से हनी बत्रा-मोनिका
बत्रा भी इसी काम से आए हुए थे और क्लिनिक वालों की गलती से वरुण बत्रा के स्पर्म मोनिका
की कोख में और हनी बत्रा के दीप्ति की कोख में जा पहुंचे। अब क्या किया जाए?
बड़े सितारों वाली हिन्दी की मसाला फिल्म में ऐसी हट कर वाली कहानी सुनी थी कभी? कहानी तो कभी ‘बधाई हो’वाली भी नहीं सुनी थी जिसे पिछले साल खूब पसंद किया गया था। सुखद बात यह कि ये दोनों ही कहानियां ज्योति कपूर की कलम से निकली हैं। लेकिन यह भी सच है कि एक राईटर तो कुछ नया, कुछ अनोखा दे रही है लेकिन क्या हमारे फिल्म वाले और उससे भी बढ़ कर आप दर्शक उस नए, उस अनोखे को उसी नएपन, उसी अनोखेपन के साथ स्वीकारने को तैयार हैं? लगता तो नहीं, क्योंकि जहां ‘बधाई हो’भी अपने फ्लेवर में एक कॉमेडी फिल्म थी वहीं यह फिल्म भी जो कह-दिखा रही है उस पर कॉमेडी का ही रैपर चढ़ा हुआ है।
फिल्म अपने कैरियर को साधने के फेर में संतान पैदा न करने वाली
पीढ़ी की बात करती है। शादीशुदा जोड़ों पर जल्दी से जल्दी मां-बाप बनने के पारिवारिक-सामाजिक
दबावों की बात करती है। चाहे कुछ हो जाए लेकिन दूसरे का बच्चा गोद लेने की बजाय अपना
बच्चा पैदा करने की इंसानी ललक की बात करती है। इस ललक को भुनाने को तैयार बैठे डॉक्टरों
को दिखाती है। लेकिन ये सब काफी कम है,
हल्का है, ज़रा-ज़रा सा है। असल में तो यह फिल्म अनजाने में हो गए स्पर्म-मिसमैच के इर्द-गिर्द
बुनी गई कहानी में बस हास्य ही परोसती है। कुछ एक टॉयलेट-ह्यूमर निकाल दिया जाए तो
यह फिल्म जम कर हंसाती है, गुदगुदाती है और चूंकि यह एक आम हिन्दी फिल्म है, तो अंत में इमोशनल भी कर जाती है।
लेकिन यह ठोस बातें नहीं करती। जो अजीबोगरीब हालत दिखाती है, उसका कोई हल नहीं देती और बस, यूं ही खत्म हो जाती है। अब सारी
क्रांति एक ही बार में ले आएंगे तो फिर आप ही लोग उस पर ‘ऑफबीट’का ठप्पा नहीं लगा देंगे?
फिल्म की स्क्रिप्ट में कसावट है। दो-एक जगह झोल खाती इस स्क्रिप्ट
को चतुराई से लिखा गया है ताकि बात भी कह दी जाए तो दर्शक के चेहरे पर मुस्कुराहट भी
बनी रहे। बल्कि कई सीन में तो जम कर ठहाके भी परोसती है यह फिल्म। अपनी इस पहली ही
फिल्म से निर्देशक राज मेहता गाढ़ा असर छोड़ते हैं। हां, यह भी है कि इसका पूरा मिज़ाज शहरी
किस्म का है सो, छोटे-सैंटर्स पर यह थोड़ा गड़बड़ा सकती है। फिल्म में गाने बहुत सारे हैं और सारे
के सारे मसालेदार हैं जो फिल्म को तड़का ही लगाते हैं।
अक्षय कुमार को उनके लगभग असली रूप में देखना सुहाता है। अपनी
रियल कॉमेडी टाइमिंग से वह खूब हंसाते हैं। करीना अपने किरदार को दम भर साधे रखती हैं।
दिलजीत दोसांझ बहुत ही क्यूट लगे हैं और कियारा आडवाणी उतनी ही प्यारी। डॉक्टर बने
आदिल हुसैन बिना किसी कोशिश के खूब हंसा जाते हैं। उनकी डॉक्टर पत्नी बनीं टिस्का चोपड़ा
भी लाजवाब रही हैं। 2019 का साल जाते-जाते ‘गुड न्यूज़’दे रहा है, लपक लीजिए इसे।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993
से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com)
के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
I would go to watch this movie
ReplyDeleteशानदर आप और आपका रिव्यू । अशोक भाटी
ReplyDeleteSweet n simple.
ReplyDeleteBht khoob
ReplyDeleteखर्चा करवा कर ही मानोगे
ReplyDeleteAapke review se lgta hai ab dekhni hi pdegii
ReplyDeleteBahut accha review sir
ReplyDeleteआपने सही कहा...फ़िल्म ठोस बात नहीं करती
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