
अपने मौजूदा समाज की यह कड़वी और स्याह तस्वीर है जिसमें दूसरों पर भरोसा करने वाली लड़कियां का सिर्फ भरोसा ही नहीं टूटता, उनका ज़मीर,
इज़्ज़त, शरीर, वजूद, सब कुचला जाता है उस ‘मर्द जात’ द्वारा जिसे गुरूर है अपने श्रेष्ठ होने पर। जिसे यकीन है कि वह औरतों से कहीं बेहतर है, खासतौर से उन औरतों से जिनके पास अपना दिमाग है, अपनी आवाज़ है, जो स्मार्ट हैं, या होना चाहती हैं। ऐसी औरतें,
चाहें घरों में हों, दफ्तरों में, सड़कों पर या सोसायटी में, ये ‘श्रेष्ठ’ मर्द मौका मिलते ही उसे दबा देना चाहते हैं, चुप करा देना चाहते हैं, खत्म कर देना चाहते हैं।
यह फिल्म ऐसी ही कहानी दिखाती है जिसमें एक सनकी नौजवान को चिढ़ है ऐसी औरतों से। कानून को ठेंगे पर रखने वाले इस युवक को पकड़ने के लिए निकली शहर की एस.पी. शिवानी शिवाजी रॉय को हर पल चकमा देता यह शख्स शातिर है, क्रूर है और मर्द होने की ईगो से लबालब भरा हुआ है। लेकिन शिवानी भी मर्दानी है और ज़ाहिर है कि उसे पकड़ ही लेती है। आखिरी का वह सीन प्रासंगिक है जब विजयी होने के बाद शिवानी एक मंदिर के बाहर बैठी है और पीछे दीवार पर महिषासुर का मर्दन करती दुर्गा की पेंटिंग बनी है। समाज के असुरों का वध करने के लिए हमें ऐसी दुर्गाएं और शिवानियां तो चाहिएं ही, ऐसे मर्द भी चाहिएं जो इनकी राह का रोड़ा बनने की बजाय इनके रास्ते के पत्थर हटाने का काम करें।

पहले ही सीन से फिल्म निशाना साधती है और अंत तक कमोबेश उसे साधे भी रखती है। पहले चंद मिनटों में ही आपकी आंखें नम होती हैं,
आपको अपने समाज की दशा पर, इस समाज में लड़कियों की दुर्दशा पर और उससे भी बढ़ कर अपनी शराफत भरी बेबसी पर क्रोध आता है। यहां से फिल्म आपके भीतर पैठना शुरू करती है और अंत तक आते-आते यह एक ज़रूरी फिल्म बन कर आपको उद्वेलित कर चुकी होती है। यह इस कहानी की जीत है। इसे लिखने-बनाने वाले गोपी पुथरन की जीत है। ठीक है कि बीच में यह बहुत सारा औरत-मर्द वाला भाषण पिलाती है लेकिन ये भाषण पिलाए जाने भी ज़रूरी हैं-तब तक, जब तक कि सारे मर्द यह न मान लें कि वे सिर्फ एक एक्स्ट्रा क्रोमोसोम की वजह से ‘मर्द’ बने हैं और सिर्फ इसी वजह से वे औरतों से श्रेष्ठ नहीं हो जाते।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
सटीक रिव्यू सर
ReplyDeleteसटीक रिव्यू सर
ReplyDeleteAapke review ka wait kar raha tha... Ab dekhunga.
ReplyDelete👍👍👍👍
ReplyDeleteघर से होमवर्क करके निकलती है..अपराधी के दिमाग़ में घुसकर सोचती है। आपका ये रिव्यू आपके मन की बेचैनी का भी पता देता है कहीं न कहीं आपको ये बातें कचोटती भी हैं रिव्यू की लंबाई बता रही हैं कि इसपर आपका रवय्या पेशेवराना न होकर आपने इसे पूरे विवेक और दिल से लिखा है आपने सही कही भले पुलिस और उसकी कार्रवाही फिल्मी हो मगर मुद्दा हक़ीक़त से लबरेज़ था। आप रिव्यू में अपने साथ साथ हमारी भी बात कहते लगे । आपको सलाम !💐
ReplyDeleteघर से होमवर्क करके निकलती है..अपराधी के दिमाग़ में घुसकर सोचती है। आपका ये रिव्यू आपके मन की बेचैनी का भी पता देता है कहीं न कहीं आपको ये बातें कचोटती भी हैं रिव्यू की लंबाई बता रही हैं कि इसपर आपका रवय्या पेशेवराना न होकर आपने इसे पूरे विवेक और दिल से लिखा है आपने सही कही भले पुलिस और उसकी कार्रवाही फिल्मी हो मगर मुद्दा हक़ीक़त से लबरेज़ था। आप रिव्यू में अपने साथ साथ हमारी भी बात कहते लगे । आपको सलाम !💐
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