-दीपक दुआ...
पंजाब की धरती पर ढेरों प्रेम-कहानियों ने जन्म लिया है। मगर
जिन चार दुखांत प्रेम-कथाओं को रहती दुनिया तक याद किया जाएगा, उनमें ‘मिजा साहिबां’ की अपनी अलग ही जगह
है। बाकी की तीन प्रेम-कहानियों ‘हीर रांझा’, ‘सोहनी महिवाल’ और ‘सस्सी पुन्नू’ में नायिका का नाम पहले लिया जाता है मगर
‘मिर्जा साहिबां’ में नायक मिर्जा का नाम पहले आता है। एक
ऐसी कहानी जिसमें मिर्जा अपनी माशूक साहिबां की ही एक गलती से मारा जाता है। यह बात
अलग है कि उसके बाद साहिबां भी अपनी जान ले लेती है।
क्या है मिर्जा-साहिबां की कहानी
संयोग यह भी है कि ये चारों ही प्रेम-गाथाएं
पंजाब के पश्चिमी हिस्से में उपजीं जो अब पाकिस्तान में है। बहरहाल, दानाबाद में जन्मे मिर्जा को स्याल में जन्मी
साहिबां के घर रह कर पढ़ने के लिए भेजा जाता है क्योंकि मिर्जा की मां और साहिबां के
पिता ने एक ही मां से दूध पिया था सो उनके बीच बहन-भाई का रिश्ता था। लेकिन इश्क क्या
जाने जात-पात, इश्क क्या जाने दीवारें।
मिर्जा और साहिबां में प्यार होना था, हो गया। किस्मत ने
इन्हें दूर किया लेकिन अपनी शादी के दिन साहिबां ने मिर्जा को बुला भेजा और अपनी मोहब्बत
की पुकार पर अपनी सगी बहन की शादी को छोड़ मिर्जा अपनी माशूक को लिवाने चल पड़ा। वह उसे
अपने घोड़े पर ले भी चला लेकिन जब रास्ते में ये दोनों एक पेड़ तले सुस्ताने के लिए रुके
तो दूर से आते अपने सातों भाइयों को देख साहिबां डर गई। उसे पता था कि अगर मिर्जा ने
अपने तीर साध लिए तो उसके सातों भाई मारे जाएंगे। सो उसने मिर्जा के तरकश में रखे सारे
तीर तोड़ डाले। उसे लगा कि मिर्जा को निहत्था देख कर उसके भाई रहम करेंगे और वह उन्हें
अपना वास्ता देकर मिर्जा पर वार करने से रोक लेगी। लेकिन साहिबां यहीं चूक गई। मिर्जा
मारा गया और साहिबां ने भी अपने पेट में तलवार भोंक ली। लोग कहते हैं कि साहिबां ने
मिर्जा को मरवा दिया लेकिन दूसरी तरफ उसने सात जानें भी तो बचाईं, सात औरतों को विधवा होने से भी तो बचाया।
शायद इस प्रेम-कहानी का यही हश्र होना था और शायद इसीलिए आज सदियों बाद भी दुनिया इन
दीवानों को याद करती है।
बात फिल्म की
मिर्जा-साहिबां की कहानी पर हिन्दी और पंजाबी में कई बार फिल्में
बनीं लेकिन राकेश ओमप्रकाश मेहरा की ‘मिर्जया’ को लेकर हवा काफी गर्म है। पहली वजह तो यही
है कि यह राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म है। उनकी जिन्होंने ‘रंग दे बसंती’ जैसी फिल्म दी और जिस तरह से उस फिल्म में
आज के दौर के युवाओं की कहानी के समानांतर भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों की कहानी दिखाई थी, उसी तरह से ‘मिर्जया’ में भी उन्होंने दो कहानियां कही हैं। एक तरफ तो बीते हुए किसी
जमाने में मिर्जा-साहिबां का किस्सा है वहीं आज के समय में दो युवाओं की कहानी कही
गई है। दूसरी वजह है इस फिल्म से अपनी शुरुआत कर रहे अनिल कपूर के बेटे हर्षवर्धन कपूर।
एक नामी स्टार और एक नामी फिल्मी परिवार के बेटे को पहली बार देखने की उत्सुकता के
साथ-साथ इस फिल्म की नायिका सयामी खेर भी अपने लिए खासी दिलचस्पी जगा चुकी हैं। एक
तेलुगू फिल्म कर चुकीं सयामी की दादी उषा किरण मराठी और हिन्दी फिल्मों की नामी अदाकारा
रही हैं। हिन्दी के दर्शक उन्हें ‘मिली’, ‘बावर्ची’, ‘चुपके चुपके’ जैसी फिल्मों में देख
चुके हैं। अदाकारा तन्वी आजमी सयामी की बुआ हैं। खुद सयामी की मां उत्तरा म्हात्रे
खेर मिस इंडिया रह चुकी हैं। इस फिल्म से जुड़ी खास बात यह भी है कि गुलजार ने इसके
गाने तो लिखे ही हैं, फिल्म की स्क्रिप्ट
भी उन्हीं की लिखी हुई है। गाने तो इसके पसंद किए ही जा रहे हैं और मान सकते हैं कि
गुलजार इस कहानी में वह दर्द डाल पाए होंगे जो दर्शकों को कचोटेगा, उनके दिलों में टीस पैदा करेगा और उनकी आंखों
को भिगोएगा। वैसे भी एक दुखांत प्रेम-कथा अगर रुला नहीं पाई तो उसका होना बेकार है।
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