Thursday 6 August 2020

यात्रा-धनसर बाबा-सिहाड़ बाबा और पटनीटॉप की तैयारी (भाग-7)

-दीपक दुआ...
धनसर बाबा
पिछले आलेख में आपने पढ़ा कि हम लोग कटरा से गाड़ी करके निकले तो ‘बाबा जित्तो’ और ‘नौ देवी’ के दर्शन कर चुके थे। अब हमें ‘धनसर बाबा’ पहुंचना था। कटरा के आसपास की तमाम जगहों में से यह मेरी पसंदीदा जगह है और यहीं पर बरसों पहले मेरी दोस्ती अनिल से हुई थी जिसका ज़िक्र मैंने पिछले आलेख में किया था। (पिछला आलेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें) धनसर बाबा का मंदिर कटरा से करीब 12 किलोमीटर दूर है। मुख्य सड़क से करीब दो सौ मीटर सीढ़ियां उतर कर जाना पड़ता है। स्थानीय लोगों में इस मंदिर की बहुत मान्यता है। माना जाता है धनसर बाबा भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। यहां पर गुफा के अंदर व ऊपर से हर समय जहां-तहां पानी गिरता रहता है जो इतना साफ और सुरम्य है कि मन करता है, इसे देखते ही रहें। यहां हमने एक वीडियो भी बनाया जिसे देखने के लिए यहां क्लिक करें। यह पानी बहता हुआ नीचे उसी छोटी-सी धारा में जा मिलता है जो पीछे नौ देवी की तरफ से आती है। इसमें काफी लोग स्नान भी करते हैं। यहां एक छोटी-सी कैंटीन भी है। यह जगह इतनी शांत और सुहानी है कि यहां घंटों बैठे रहने को दिल चाहता है।

सिहाड़ बाबा का मंदिर और झरना
सिहाड़ बाबा
धनसर बाबा के दर्शन के बाद हमारे ड्राईवर मोनू ने कहा कि अब आपको ऐसी जगह ले चलता हूं जहां आपको बहुत आनंद आएगा। कुछ देर बाद हम लोग वहां पहुंचे तो सचमुच इस जगह की सुंदरता और शांति ने हमारा मन मोह लिया। यह जगह थी ‘सिहाड़ बाबा’। कटरा शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर शिव खोड़ी जाने वाले रास्ते के करीब इस जगह पर एक मंदिर है। यहां पर लगभग 100 फुट की ऊंचाई से एक झरना गिरता है जिसे निहारना बहुत अच्छा लगता है। यहां बहुत सारे भक्त दर्शनों के लिए आते हैं। काफी लोग इस झरने के करीब पानी में स्नान का आनंद भी लेते हैं। बहुत ही शांत और प्यारी जगह है यह। यहां क्लिक करके इस वीडियो में देखिए कि यह झरना कितना ऊंचा और सुंदर है।

रियासी गार्डन और ढाबे का लंच
रियासी गार्डन
सिहाड़ बाबा के बाद मोनू जी हमें थोड़ी दूर स्थित रियासी गार्डन ले गए। यह एक सुंदर पार्क है जिसमें पानी की धारा भी है और एक पूल भी। बच्चों ने यहां झूलों का आनंद लिया। दोपहर के खाने के लिए मोनू ने एक स्थानीय ढाबे के बाहर गाड़ी लगा दी। ऐसे ढाबों पर खाने की वैरायटी भले ही ज़्यादा न होती हो लेकिन जो कुछ मिलता है वह बहुत स्वादिष्ट और शहरी ढाबों से सस्ता भी होता है। यहां से लगभग घंटे भर में हम लोग कटरा पहुंच कर अपने कमरे में आराम फरमा रहे थे।

डिनर के बाद हुई एक और दोस्ती
उस रात हमने फिर उसी शालीमार भोजनालय में खाना खाया जहां हम बीती रात गए थे और जिसके दरवाजे पर लिखा था-‘यहां पर बढ़िया रेस्टोरैंट का खाना ढाबे के रेट पर मिलता है।’ भोजनालय के मालिक हमें पहचान गए और कल ही की तरह हमें बहुत इज़्ज़त के साथ भोजन करवाया। कटरा में यह हमारी आखिरी रात थी इसलिए हम लोग काफी देर तक बाज़ार में और दुकानें बंद हो जाने के बाद इधर-उधर घूमते रहे। देर रात अपने होटल के नज़दीक एक दुकान पर हम चाय और गर्म दूध पीने गए तो दुकान के मालिक से यहां-वहां की काफी बातें हुईं। दरअसल हमारी इस यात्रा के दौरान पितृ-पक्ष चल रहा था। तीन-चार दिन बाद नवरात्रे शुरू होने वाले थे और कटरा शहर सजने लगा था। उन्होंने बताया कि हम लोगों को यहां नवरात्रे के दिनों में आना चाहिए। उन दिनों में यहां की सजावटें और रौनकें देखते ही बनती हैं। पर जब हमने उन्हें बताया कि कल सुबह हम लोग पटनीटॉप के लिए निकल रहे हैं तो उन्होंने कहा कि रास्ते में ‘जखानी पार्क’ ज़रूर देखिएगा। पता चला कि वह सज्जन उस पार्क में माली का काम करते हैं और रात में अपनी यह दुकान चलाते हैं जिसे दिन में उनका बेटा चलाया करता है। उनसे विदा लेकर हम लोग अपने होटल में आ गए। सारे सामान की पैकिंग करने के बाद एक बार फिर से हम लोग अपने कमरे के बाहर लॉन में कुर्सियों पर बैठ कर सामने त्रिकुटा पर्वत पर वैष्णो देवी के भवन को जाने वाले रोशनियों से नहाए सर्पीले रास्ते की सुंदरता को अपने ज़ेहन में भरते रहे कि जाने यहां फिर कब आना हो। अगली सुबह हमें पटनीटॉप के लिए निकलना था जहां एक अलग ही रोमांच हमारा इंतज़ार कर रहा था। पढ़िएगा अगली किस्त में, इस पर क्लिक कर के।

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