Friday, 26 August 2016

रिव्यू-‘फ्लाईंग जट्ट’ पासे हट

एक सुपर हीरो जिसे एक पेड़ से शक्ति मिलती है।

एक सुपर विलेन जिसे प्रदूषण से ताकत हासिल होती है।

अच्छाई और बुराई की वही पुरानी कहानी जिसमें अच्छाई को पहले तो मात मिलती है लेकिन अंत में जीत भी उसी की होती है।

अपने इस देसी सुपर हीरो की कहानी में भी वही सब है जो किसी भी सुपर हीरो की कहानी में होता है। एक आम लड़का जो सीधा है, सरल है, सच्चा है। किसी से भिड़ने की तो छोड़िए, ऊंचाई तक से उसे डर लगता है। उस पर अत्याचार होता है और फिर एक चमत्कार से उसे सुपर पॉवर मिल जाती है और वह निकल पड़ता है दुनिया को बचाने।

अगर अच्छे से लिखी जाती तो इस कहानी पर एक बेहद शानदार फिल्म बन सकती थी लेकिन यह मसालों, रंगीनियों और चमक-दमक के लेप से पुती एक खोखली फिल्म बन कर रह गई है तो कसूर लेखक और निर्देशक का है, उनकी उस सोच का है जो साफ और दूर तक नहीं देख पाई।

इंटरवल तक जो हंसी-मजाक चलता है वह जंचता तो है मगर फिल्म को एक स्तर से ऊपर नहीं उठने देता। इंटरवल के बाद कहानी उलझ जाती है। एक साथ प्रदूषण, धर्म, भक्ति, प्यार, विश्वास, दोस्ती जैसी चीजों को दिखाने के फेर में यह कहीं की नहीं रहती।

ऐसा नहीं कि फिल्म निपट निठल्ली है। हंसी के कुछ पल सुहाते हैं। वातावरण बचाने, प्रदूषण कम करने और सिक्ख धर्म की बातें भी ठीक हैं मगर यह सब रस्मी तौर पर निबटाया गया लगता है। कुछ-कुछ सीन अच्छे हैं लेकिन वह काफी कम और दूर-दूर बिखरे पड़े हैं।

टाईगर श्रॉफ अभी खुद को परखने में लगे हैं। शुरूआती दौर में हर अभिनेता के साथ ऐसा होता है जब वह तरह-तरह के रोल में आने का जोखिम उठाता है। कुछ एक जगह कच्चेपन के बावजूद अपने किरदार में की गई टाईगर की मेहनत झलकती है। उनके दोस्त (या भाई...? हालांकि दोनों हमउम्र दिखते हैं) के किरदार में गौरव पांडेय प्रभावी रहे हैं। जैक्लिन फर्नांडीज़ को शोपीस की तरह रखा गया और उन्होंने अपनी शो कम नहीं होने दी। के.के. मैनन, अमृता सिंह ठीक रहे तो विलेन नाथन जोन्स असरकारी।

फिल्म का म्यूजिक साधारण है। एक-आध को छोड़ बाकी के गाने देखने में भले ही जंचें, सुनने-गुनगुनाने लायक नहीं हैं। सामने पर्दे पर भंगड़ा पा...बज रहा हो और मुझ जैसे पंजाबी के जिस्म में कोई थिरकन-फड़कन न हो तो भला कैसा भंगड़ा?

कोरियोग्राफर से निर्देशक बने रेमो डिसूज़ा ने अपनी हर फिल्म का फोकस युवाओं पर रखा है। इस बार भी उन्होंने ऐसे मसाले डाले हैं जो स्कूल-काॅलेज के युवाओं को पसंद आएंगे। कॉमेडी, रोमांस, एक्शन और म्यूजिक के इन चटपटे मसालों के दम पर यह फिल्म टिकट-खिड़की पर भले ही जीत जाए लेकिन दिलों को जीत पाने का दम इसमें नजर नहीं आता। ढाई घंटे की इसकी लंबाई अखरती है और दिल ऐसे जट्ट को पासे हट’ (चल साईड हो) कहने लगता है।

फिल्म का ट्रेलर बच्चों को भा रहा है। असल में यह बच्चों के ही मतलब की एक बचकानी फिल्म है। रही टाईगर और जैक्लिन के किस्स-सीन की बात, तो बच्चों के पापा-मम्मी के लिए भी तो कुछ होना चाहिए न...!
अपनी रेटिंग-दो स्टार
(
दीपक दुआ फिल्म समीक्षक पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग सिनेयात्रा डॉट कॉम(www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक फिल्म क्रिटिक्स गिल्डके सदस्य हैं और रेडियो टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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