Friday, 5 August 2016

रिव्यू-द ‘झंड’ ऑफ माइकल मिश्रा

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
अरशद सर आपको एक फिल्म में लेना है, कहानी यह है कि...!
अरे छोड़ यार, पैसे कितने दोगे, यह बोलो...?
अदिति मैम, आप अरशद वारसी की हीरोइन होंगी, कहानी...!
छोड़िए भी, पैसे बताइए...!
बोमन सर, आपको और आपके बेटे को एक साथ लेंगे।
ओह गुड, डन। पैसे बोलो...!
प्रोड्यूसर जी, अरशद-अदिति-बोमन राजी हो गए हैं। कहानी सुन लीजिए...।
अरे छोड़ यार, पैसे बोल कितने लगेंगे...?

इस फिल्म (द लीजेंड ऑफ माइकल मिश्रा) को देखते हुए लगता है कि यह इसी तरह से बनी होगी। मुमकिन है कि दो लाइन में इसकी कहानी सबको अच्छी लगी भी हो लेकिन जिस तरह से इसकी स्क्रिप्ट लिखी गई है और जिस तरह से इसे बनाया गया है... तौबा...! रोमांस, एक्शन, काॅमेडी, इमोशन, कुछ तो होता जो बांध कर रखता। हैरानी होती है कि यह उन मनीष झा की फिल्म है जिनकी मातृभूमिको काफी तारीफें मिली थीं और जो अपनी एक शाॅर्ट फिल्म के लिए कान फिल्म समारोह तक से अवार्ड ला चुके हैं।

बनाने वाले ने भले ही अपने 4-5 करोड़ रुपए की परवाह की हो, आप अपनी मेहनत (या ऊपर) की कमाई और वक्त (भले ही फालतू क्यों हो), अपने रिस्क पर ही फूंकिएगा।

और हां, फिल्म खत्म होने के बाद आप खुद को टटोल कर जरूर देखें कि आप सचमुच हैं भी या बोरियत के मारे लुढ़क लिए।
अपनी रेटिंग-1 स्टार
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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