-दीपक दुआ
छह साल पहले की बात है। दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में सलमान खान की आने वाली फिल्म ‘दबंग’ की प्रैस-कांफ्रेंस थी। वक्त से पहले पहुंचने की अपनी आदत के चलते वहां पहुंचा और अपने मिजाज के मुताबिक सबसे पहले यही पूछा कि डायरेक्टर कहां है? ‘ब्लैक फ्राईडे’, ‘देव डी’, ‘गुलाल’ जैसी उम्दा और अलहदा फिल्में रचने वाले निर्देशक अनुराग कश्यप के भाई अभिनव कश्यप इस फिल्म के डायरेक्टर थे। ‘दबंग’ बनाने से पहले वह मणिरत्नम की ‘युवा’ समेत कई बड़ी फिल्मों में बतौर सहायक निर्देशक काम कर चुके थे। उस समय उनसे हुई बातचीत में उन्होंने अच्छे सिनेमा का हिस्सा बनने की बात की मगर सच तो यह है कि उनकी ‘दबंग’ से ही हिन्दी सिनेमा में चाट-पकौड़ी वाली फिल्मों का दौर लौटा। इसके तीन साल बाद वह ‘बेशर्म’ जैसी अझेल फिल्म लेकर आए और अब तीन साल में भी उनकी कोई फिल्म नहीं आ पाई है। उस दिन उन्होंने मुझ से बातचीत में जो कहा, वह कितना सच हुआ और आज कितना प्रासंगिक है, यह आप खुद ही पढ़ें। वैसे बता दूं कि आज 6 सितंबर को अभिनव का जन्मदिन है।
-‘दबंग’ को आप किस तरह के दर्शक-वर्ग की फिल्म कहेंगे?
-हर तरह का दर्शक इसे देखना चाहेगा। पढ़ी-लिखी जनता, शहर की जनता, गांव की जनता, सड़क के लोग, क्लास, मास सब।
-अपनी पहली फिल्म की रिलीज से पहले आप कितने नर्वस हैं?
-नर्वस बिल्कुल नहीं हूं क्योंकि यह फिल्म बहुत अच्छी बनी है और मुझे पूरा भरोसा है कि यह कामयाबी के कई रिकॉर्ड तोड़ेगी।
-क्या ईद पर इसके आने का भी फायदा इसे होगा?
-बिल्कुल होगा। ईद पर मुस्लिम दर्शक-वर्ग रमजान के महीने के बाद मनोरंजन का भूखा होता है तो इस चीज का जरूर फायदा होगा। सलमान हैं इसमें, उसका भी फायदा होगा, सोनाक्षी सिन्हा के होने का फायदा होगा, साजिद-वाजिद के हिट म्यूजिक का फायदा होगा, फायदे ही फायदे हैं।
-क्या आपको उम्मीद थी कि यह फिल्म इतनी बड़ी और भव्य बनेगी?
-नहीं, इसे लिखते समय मैंने ऐसा बिल्कुल नहीं सोचा था। मेरी जिंदगी का सबसे खास दिन वह था जब मैं अरबाज खान को इस फिल्म के लिए बतौर एक्टर साइन करने गया और मुझे उन जैसा प्रोड्यूसर भी मिल गया। इसे कहते हैं एक के साथ एक फ्री। मुझे लगता है कि कि मैं बहुत खुशकिस्मत हूं जो मेरी शुरूआत इतनी बड़ी फिल्म से हो रही है।
-सलमान खान को बहुत मूडी माना जाता है। उनके साथ काम करने में कोई दिक्कत?
-बिल्कुल नहीं। एक तो वह उतने मूडी हैं नहीं जितना उनके बारे में कहा जाता है और जैसे ही उन्होंने यह स्क्रिप्ट सुनी तो वह अच्छे मूड में आ गए और इसे करने को राजी हो गए। फिर सलमान के बारे में तो सब जानते ही हैं कि अगर एक बार उन्होंने कमिटमैंट कर दी तो वह खुद की भी नहीं सुनते। उसके बाद सब कुछ बहुत ही आसान हो गया हम सबके लिए।
-सलमान को मूंछों में दिखाने का आईडिया किसका था?
-आईडिया तो मेरा ही था क्योंकि जिस जगह की यह कहानी है वहां पर पुलिस वाले आमतौर पर थोड़े भारी और मूंछों वाले भी होते हैं। लेकिन सलमान को मूंछें लगाने के लिए मनाना सचमुच बहुत ही मुश्किल था। पहले तो वह यही कहते रहे कि यार, क्यों मेरे पीछे पड़ा है? पर शूटिंग के पहले दिन वह खुद ही तरह-तरह की मंूछें लगा कर देखते रहे। इससे मेरे अंदर एक कांफिडेंस आ गया कि सलमान डायरेक्टर की बात सुनते हैं और उसे मानते भी हैं।
-सुना है कि सलमान ने इस फिल्म में कई जोखिम भरे स्टंट खुद ही किए हैं?
-हां। चूंकि इस फिल्म की कहानी उत्तर प्रदेश में बेस्ड है तो हमारे एक्शन-डायरेक्टर एस. विजयन ने हाईटेक एक्शन की बजाय लात-घूंसों वाली मारामारी पर ज्यादा जोर दिया। सलमान ने भी अपनी तरफ से खूब जोखिम उठाए और कई खतरनाक स्टंट बिना किसी डुप्लिकेट की मदद के खुद ही किए।
-अपनी फिल्म इंडस्ट्री में कई गुट बने हुए हैं। इनमें आपका कितना यकीन है?
-मैं किसी के गुट का हिस्सा बनने की बजाय अच्छे सिनेमा के गुट का हिस्सा बनना चाहूंगा।
-आप किसी फिल्मी परिवार से नहीं हैं तो क्या ऐसे में यहां तक का सफर ज्यादा मुश्किल नहीं रहा?
-हां, मैं बहुत सारी मुश्किलों में से होकर निकला हूं। यहां काफी ऐसे लोग हैं जिनके पास अच्छी स्क्रिप्ट है और वे डायरेक्ट भी कर सकते हैं लेकिन यही बात दूसरों से मनवाना आसान नहीं होता। कोई भी आप पर पैसा भला क्यों लगाएगा? तो ऐसे में थोड़ा ज्यादा वक्त लगता है। पहले आपको छोटा काम मिलता है फिर धीरे-धीरे लोगों का आप पर भरोसा बढ़ता जाता है तब कहीं जा कर आपको एक बड़ी फिल्म मिलती है। मुझे खुद यहां पर दस साल हो चुके हैं तब जा कर मैं ‘दबंग’ बना पाया हूं।
-आपके भाई (अनुराग कश्यप) जिस तरह की फिल्में बनाते हैं उनसे आप खुद कितना रिलेट करते हैं?
-बहुत ज्यादा रिलेट करता हूं। वह बहुत अच्छी फिल्में बनाते हैं और मुझे मौका मिला तो मैं भी वैसी फिल्में बनाना चाहूंगा।
-पर क्या आपको नहीं लगता कि एक बार ‘दबंग’ जैसी मसाला फिल्म दे देने के बाद आप उस खांचे में बंध कर रह जाएंगे?
-कोई नहीं बंधता। जो लोग बंधते हैं वे बंधना चाहते हैं इसलिए बंधते हैं। मैं नहीं बंधने वाला, यह तय है।
-अपने काम में क्या कभी आप अपने भाई से भी सलाह-मशविरा करते हैं?
-बिल्कुल करता हूं। एक जीनियस राईटर-डायरेक्टर परिवार में हो तो उसका फायदा उठाने में हर्ज ही क्या है।
-आप दोनों भाई डायरेक्टर हैं तो ऐसे में आपके पेरेंट्स की क्या प्रतिक्रिया होती है?
-हमारे पेरेंट्स इन मामलों से दूर रहते हैं। वे हम दोनों के लिए खुश हैं कि हम अपनी मनचाही चीजें कर रहे हैं।
-भाई के साथ अब किसी तरह की प्रतियोगिता महसूस हो रही है?
-प्रतियोगिता तो हमारे बीच शुरू से ही रही है। बचपन में हम दोनों एक-दूसरे से कुश्ती लड़ते थे। अब हमारी फिल्में भिड़ेंगी।
-आगे क्या प्लान है?
-और ज्यादा फिल्में बनाऊंगा। कुछ स्क्रिप्ट्स पर काम चल रहा है पर अभी कुछ तय नहीं है।
(अभिनव का यह इंटरव्यू छह साल पहले ‘हिन्दुस्तान’ में छप चुका है।)
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