महाराष्ट्र का एक किसान अपने परिवार समेत बोरिया-बिस्तर लेकर आगरा जा पहुंचे और दावा करे कि ताजमहल उसके पुरखों की जमीन पर बना है। मामला कोर्ट में जाए और वह किसान सारे सबूत भी ले आए तो सोचिए क्या हो?
कहानी दिलचस्प है और धीरे-धीरे जब इसकी परतें खुलती हैं तो यह दिलचस्पी लगातार बढ़ती भी जाती है। फिल्म इस उत्सुकता को बनाए रखने में कामयाब रही है कि आखिर यह क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है और इसके पीछे का असल मकसद क्या है।
मगर कहानी के दिलचस्प होने से बात बनती होती तो अपने यहां की हर दूसरी फिल्म दर्शकों के दिलों पर राज कर के कामयाब हो रही होती। दिमाग में आई एक छोटी-सी कहानी को एक कसी हुई स्क्रिप्ट में तब्दील करते हुए कागज पर उतारना जितना मुश्किल होता है उतना ही मुश्किल उस स्क्रिप्ट को पर्दे पर जीवंत रूप देना भी होता है और यह फिल्म इन दोनों ही कामों को काफी हल्के तौर पर लेती नजर आती है। किसानों की जिस समस्या और सिस्टम की जिस खामी की बात अंत में सामने आती है, वह न तो असर छोड़ पाती है और न ही उसकी टीस महसूस होती है तो जाहिर है इसके लिए इसके लेखक और निर्देशक दोनों कसूरवार हैं जो अपने काम में वह परिपक्वता नहीं ला पाए, जिसकी इस कहानी को दरकार थी। जब आपका विज़न स्पष्ट नहीं होता है तो उसका खामियाजा फिल्म को भुगतना पड़ता है। यहां भी यही हुआ है जिसके चलते एक अच्छी कहानी अपने आखिरी पड़ाव तक आते-आते असर छोड़ने लगती है।
मराठी किसान के रोल में श्रेयस तलपड़े ने सचमुच जोरदार काम किया है। उनकी भंगिमाएं विश्वसनीय लगती हैं। मंजरी फड़नीस ने भी असरदार अभिनय किया है। मंत्री बने हेमंत पांडेय ने कहीं-कहीं ओवर होने के बावजूद जिस तरह से ब्रज भाषा को पकड़ा, वह सराहनीय है। संगीत साधारण है। अधपकी पटकथा, अकुशल निर्देशन और संपादन की गुंजाइश के अलावा फिल्म के कम पैसे में बने होने की चुगली भी पर्दे पर साफ दिखाई देती है। फिल्म पूरी होने के बाद पैन एंटरटेनमैंट ने इसे रिलीज करने में जो उत्सुकता दिखाई वह सहारा अगर इस फिल्म को शुरू से मिला होता तो मुमकिन है आज इसे देख कर मुंह से सचमुच ‘वाह ताज’ निकल रहा होता।
अपनी रेटिंग-दो स्टार
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com)
के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
No comments:
Post a Comment